केवल
राजा को ही
क्यों
घेरे ?
क्या
कुछ कम गलती है
मेरे
तेरे ?
राजा एक हो सकता है
या
सात हजार सात सौ सात
पर
परजा की बात
तो
करोड़ों में जाती है
फिर भी
नयी रौशनी नहीं आती है ।
राजा के
सेवक
लठैत
मुनीम
गुमाश्ता
पंडित
हरकारा
में हम नहीं है ।
राजा का उतरन पहनने वाला
कम नहीं है ।
बाहर
राजा जिसे अखरता है ।
घर में
राजा की नक़ल नहीं करता है ?
बाहर
अराजकता
लूट
अन्याय
का शोर है
पर
सच पूछो तो
हमारे अन्दर भी एक चोर है
जो
भूख के नाम पर छीन लाये
रोटी को
खुद डकार जाता है
मगर
वादें लेनिन की करता है ।
कसमें माओ की खाता है ।
कुछ कम गलती है
मेरे
तेरे ?
राजा एक हो सकता है
या
सात हजार सात सौ सात
पर
परजा की बात
तो
करोड़ों में जाती है
फिर भी
नयी रौशनी नहीं आती है ।
राजा के
सेवक
लठैत
मुनीम
गुमाश्ता
पंडित
हरकारा
में हम नहीं है ।
राजा का उतरन पहनने वाला
कम नहीं है ।
बाहर
राजा जिसे अखरता है ।
घर में
राजा की नक़ल नहीं करता है ?
बाहर
अराजकता
लूट
अन्याय
का शोर है
पर
सच पूछो तो
हमारे अन्दर भी एक चोर है
जो
भूख के नाम पर छीन लाये
रोटी को
खुद डकार जाता है
मगर
वादें लेनिन की करता है ।
कसमें माओ की खाता है ।
- ॐ राजपूत
३१ -८ - २०१०
३१ -८ - २०१०