रविवार, 5 जून 2022

समय में भारी उलझन है

 कविता , 05/06/2022

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समय में भारी उलझन है,
लोग परेशान बहुत हैं,
इसलिए
काम भी बहुत है।
आदतन
सभी अपने हिस्से की बात को
सच मानने के लिए बाध्य हो चुके हैं।
खेल के नियम कुछ इस प्रकार
सख्त और पवित्र हो चुके हैं
कि
हमने अपने पक्ष को सच मान लिया है।
और जिसे हम गलत मानते हैं
उसे
मिथ्या मानने के लिए बाध्य हो चुके हैं।
अपने मूल स्वरूप में
सच क्या है और झूठ क्या है,
सही क्या है
और
गलत क्या है,
इसकी फिक्र करना
अनैतिक होने जैसा
सख्त बना दिया गया है,
अज्ञात के अनंत में हमने
जो कुछ
निश्चित स्थापित कर लिया है,
उस
सूक्ष्म अभौतिक तत्व
और
वैचारिक व्यवस्था को
सही मानते हुए
अज्ञात रास्ते को
ज्ञात
राजमार्ग, धर्ममार्ग बनाने की जिद में
वहशी बने जा रहे हैं।
सात घोड़े की लगाम को मुट्ठी में पकड़े
भागे जा रहे है,
बुर्राक पे उड़े जा रहे हैं।
अपने अलावे सभी को तौलते हुए
नापते हुए
अलग अलग ढेर में
हम
अलग अलग समय में लोगों को खड़ा करते हुए
हाँफ रहे हैं,
फिर भी रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं।
और
इस तरह हम खुद को
दुनिया का एकमात्र संवेदनशील, वैज्ञानिक
प्राणी मानने वालों की
जमात में
शामिल लोगों की पंक्ति में खड़ा पा रहे हैं।