गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

मेरे हाथ से छूटते शब्द

शाम के धुंधलके में
उस दीवार पर
चस्पां दिया गया
फरमान
चाहो तो चले जाओ
अथवा मर जाओ
जहाँ
प्रेमियों ने अपने हाथों
इबारत उगाई थी
मुझे
जिंदगी देने वाली हाथ ने कहा
- हम तुम्हारे कोई नहीं
वक़्त का सूरज
काले लिबास में धंस गया
आँखों की रौशनी उड़ चली
प्रणय का गीत गाने वाला
गवैया
चिल्लाने लगा
एक छोटी बच्ची को
उसकी माँ ने पीट दिया
मेरे हाथ से छूटते शब्दों ने
साबित कर दिया
कि
उन्हें बंधक बनाया गया है .

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