आप देख सकते हैं
तब
आपकी आँखे पथरायी
क्यों नहीं है
और
यदि आप यह दावा करते हैं कि
आप बोल सकते हैं
तो
आपकी आवाज़ बैठी क्यों नहीं है
इक्कीसवीं सदी में जिन्दा होने की
मुनादी करवाने वाले आप
मर क्यों नहीं पा रहे हैं
यदि बात ऐसी है तो
आप भी संदेह के परे नहीं है
और
इतिहास
आपकी भागीदारी को भी दर्ज करेगा
क्योंकि
इस बुरे माहौल में
आपने
जीने का तरीका ढूंढ़ लिया है.
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