गुरुवार, 17 मई 2018

मेरी कविता

दुःख की घड़ी में

मेरे साथ रहती है

मेरी प्रेयसी मेरी कविता

हाथों में लिए

ढाढ़स के अनगिणत शब्द

और

सुख के क्षण में

बिखरती रहती है

मेरी प्रेयसी मेरी कविता

गंध और स्पर्श के सहारे

जब मैं कटता हूँ दुनिया से

एकमात्र

मेरी कविता मुझसे जुड़ती है

अनुभूति की बाहें फैलाकर

और

जब मैं रमता हूँ दुनिया में

मेरी कविता ही बनती है

माध्यम

अभिव्यक्ति की

शोक में हर्ष में

अपकर्ष और उत्कर्ष में

रण और वन में

हरपल मेरे मन में

विचरती रहती है

मेरी प्रेयसी मेरी कविता

मैं समाता हूँ

अपनी कविता की इयत्ता में

और यही

दुनिया में अकेली

मेरी परवाह करती है

मैं देता हूँ इसे

रूप

यह देती है मुझे

परिभाषा

दुनिया के सारे

अर्थ, संबंध, रिश्ते, भाव, राग

उस मुकाम पर

पहुँचने का साधन मात्र है

जहाँ

मैं और मेरी प्रेयसी

निर्बाध मिल सके

मेरी प्रेयसी कविता

मेरी अंतिम खोज है .

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