पूरी गर्मजोशी के साथ
मैं उस क्षण
भी
करूँगा तुम्हारा स्वागत
जब
शरीर मुर्झा चुका होगा।
आँखों ने बोलना
और
मस्तिष्क ने समझाना
बंद कर दिया होगा।
एक-एक कर ढेरों
कैलेंडर
उतर चुके होंगे दीवार से .
मैं दीवार पर
एक नया कैलेंडर खिलाऊंगा।
और फूलदान से
रोज की भांति
बासी फूलों को निकाल
उसमें
ताजे फूलों के साथ
शेष बची जिंदगी को भी
तुम्हारे लिए
सजा दूंगा.
समय ठहरा रहेगा तब तक.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें