देर आयद दुरुस्त आयद। हर स्पेनी भाषी की जुबां पर यही लफ्ज़ है। 2010 का नोबेल पुरस्कार पेरू के मारिओ वार्गास ल्योसा को मिला है। नोबेल पुरस्कार 11 साल बाद दक्षिण अमेरिका लौटा है। इस खबर पर कोलम्बिया के महान लेखक एवं नोबेल विजेता गार्सिया माख्रेज़ ने अपनी प्रतिक्रिया ट्विटर पर देते हुए कहा, ‘अब हम बराबर हैं।’
दोनों की प्रतिद्वंद्विता जग जाहिर है, हालाँकि एक समय में दोनों करीबी दोस्त हुआ करते थे, यहाँ तक कि ल्योसा ने अपनी पी एच डी थीसिस माख्रेज़ पर लिखी थी जो 1971 में स्टोरी ऑफ अ देइसिदे के नाम से प्रकाशित हुई। 1976 में ल्योसा ने माख्रेज़ को जबर्दस्त घूँसा मारा था और तब से दोनों में बातचीत बंद है। 2010 के नोबेल पुरस्कार के साथ मारिओ वार्गास ल्योसा के ऐसे कई किस्से अब पौराणिक गाथा बन जायेंगे।
मारिओ वार्गास ल्योसा का जन्म 28 मार्च, 1936 में एक मध्यमवर्गीय परिवार में पेरू के आरेकीपा नामक प्रांत में हुआ। माता-पिता के तलाक के चलते उनकी परवरिश ननिहाल में हुई। 14 की उम्र में उनके पिता ने उन्हें लीमा मिलिट्री अकादमी भेजा, लेकिन उन्होंने अकादमी छोड़ दी और पिउरा में पढ़ाई खत्म करके अखबार में नौकरी कर ली। 1953 में उन्होंने अपने से 13 साल बड़ी जूलिया उर्कीदी से शादी कर ली। शादी 9 साल में टूट गई और उन्होंने एक साल बाद अपनी चचेरी बहन पेत्रिशिया ल्योसा से शादी की जिससे उनके 3 बच्चों हैं।
ल्योसा का पहला उपन्यास ‘ला सिउदाद ई लोस पेरेस’ (शहर और कुत्ते) 1963 में प्रकाशित हुआ। यह लीमा मिलिटरी स्कूल के कैडेटों की कहानी है और लेखक के अपने अनुभवों पर आधारित है। पहले उपन्यास को बहुत प्रशंसा और सफलता मिली। आलोचकों ने ल्योसा की जीवंत और निपुण जटिल लेखन शैली कि तारीफ की और इस उपन्यास को प्रेमिओ दे क्रितिका एस्पन्योला (स्पेनी आलोचक पुरस्कार) प्राप्त हुआ, लेकिन इस उपन्यास में पेरू के सैन्य प्रतिष्ठान कि कड़ी आलोचना से वहां हड़कंप भी मचा। कई जनरलों का कहना था कि यह एक ‘पतित दिमाग’ का काम था और वह इक्वाडोर की पेरू की सेना के खिलाफ साजि़श थी।
1965 में उनका दूसरा उपन्यास ‘ला कासा वेर्दे’ (हरा घर) प्रकाशित हुआ। यह कहानी कासा वेर्दे (हरा घर) नामक कोठे की कहानी है और उसकी पौराणिक उपस्थिति पात्रों की जिंदगी पर कैसे असर करती है। इस उपन्यास को भी आलोचकों ने सराहा और इसे इतने पुरस्कार मिले कि मारिओ वार्गास ल्योसा का नाम दक्षिण अमेरिका के महत्वपूर्ण लेखकों में लिया जाने लगा। बहुत से आलोचकों का आज भी मानना है कि ला कासा वेर्दे ही ल्योसा की सबसे बड़ी कृति है। मशहूर आलोचक जेराल्ड मार्टिन का मानना है कि ला कासा वेर्दे दक्षिण अमेरिका के साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास है।
तेतीस की उम्र में उनका तीसरा उपन्यास ‘कोन्वेर्ससिओन एन ला कातेद्रल’ (कैथ्रेडल में बातें) 1969 में प्रकाशित हुआ। यह कहानी है मिनिस्टर के बेटे सान्तिएगो जवाला और उसके ड्राईवर आम्ब्रोसियो की। दोनों की बातचीत होती है कैथ्रेडल नामक एक बार में और इस बातचीत के जरिये जवाला पेरू के नामी अंडरवर्ल्ड बदमाश की हत्या में अपने पिता की भूमिका की सचाई पता लगाने की कोशिश करता है। हालांकि उसे न कोई जवाब मिलता है न किसी बेहतर भविष्य की उम्मीद, और इस बातचीत के जरिये ल्योसा तानाशाही पर तीखी टिप्पणी करते हैं।
पूरे उपन्यास में निराशा का स्वर इसे मारियो वार्गास ल्योसा की सबसे कटु कृति बना देता है। इस उपन्यास के बाद ल्योसा ने राजनीति और सामाजिक दिक्कतों से हट कर व्यंग्य की और रुख किया। इस दौर में उन्होंने ‘पंतालेओं य लॉस विसितादोरास’ (कैप्टेन पान्तोखा और उनकी मेहमान) लिखी जो एक तरह से ला कासा वेर्दे कि पैरोडी है।
1977 में ल्योसा ने ‘ला तिया खुलिया य एल एस्क्रिबिदोर’ (आंटी जूलिया और कथाकार) प्रकाशित की। यह उपन्यास उन्होंने जूलिया उर्कीदी को समर्पित किया और उनकी पहली शादी पर ही आधारित है। 1981 में ल्योसा ने अपना चौथा और पहला ऐतिहासिक उपन्यास ‘ला गैर्रा देल फिन देल मुन्दो’ (दुनिया के अंत का युद्ध) लिखा। यह उपन्यास 19 शताब्दी के ब्राजील के कानुदोस युद्ध को दर्शाता है और इससे ल्योसा एक बार फिर संजीदे लेखन को लौटते हैं।
वार्गा ल्योसा के इस उपन्यास में इन्सान का हिंसा को आदर्श बनाने कि प्रवृति का अनवेशंड और धर्मान्धता के चलते इंसानों द्वारा रचित तबाही के विवरण ने लेखक को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। वार्गास ल्योसा का कहना है कि यह उनकी सबसे प्रिय और सबसे मुश्किल कृति है, और फिर शुरू हुआ दौर कुछ छोटे उपन्यास लिखने का जिनमें ‘हिस्तोरिया दे मायता’ (मायता का इतिहास) और ‘किएन मातो आ पालोमीनो मोलेरो’ (पालोमीनो मोलेरो को किसने मारा?) उल्लेखनीय हैं।
मारियो वार्गास ल्योसा के लेखन में इतिहास और व्यक्तिगत अनुभव का मिश्रण होता है। उनकी कृतियों में दुखद और बेतुकी स्थितियों का मानवीय विवरण है और उनके देश पेरू में बीसवीं सदी के महानगर का शोर, आत्मा की जटिलताएं, नागरिकों की आवाज, अपने समय कि समस्याओं और जुनून का परिदृश्य है।
डायलॉग की साहित्यिक तकनीक से मारिओ वार्गास ल्योसा अपनी लेखन शैली को एक नया रूप देते हैं। ला कासा वेर्दे में अलग अलग समय पर हो रही बातचीत को जोड़कर ल्योसा फ्लैशबैक का भ्रम पैदा करते हैं तो कभी एक समय पर अलग अलग जगह पर हो रही दो बातचीतों को जोड़कर स्थानान्तरण का अनुभव पैदा करते हैं।
मारियो वार्गास ल्योसा की रचनाओं को आधुनिकतावादी और उत्तर आधुनिकतावादी दोनों माना जाता है। उनकी शुरुआती रचनाओं, जैसे ला कासा वेर्दे और कोन्वेर्ससिओन एन ला कैथ्रेडल की तकनीकी जटिलता और उनके संजीदा स्वर के मद्देनजर उन्हें आधुनिक साहित्य का हिस्सा माना जाता है और बाद में आने वाले उपन्यास जैसे ला तिया खुलिया ई एल एस्क्रिबीदोर, एल आव्लादोर (कथाकार) और हिस्तोरिया दे मायता को उत्तर आधुनिक शैली का हिस्सा माना जाता है क्योंकि इनका स्वर व्यंगात्मक है।
कई दक्षिण अमेरिकी लेखकों की तरह ल्योसा ने भी क्यूबा में फिदेल कास्त्रो की क्रान्ति और शासन को समर्थन दिया था, लेकिन धीरे धीरे उनको लगा की वहाँ का समाजवाद आजादी के खिलाफ था और वामपंथ से मुंह मोड़ कर वो दक्षिणपंथ कि तरफ मुड़ गए। 1990 में उन्होंने राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव लड़ा। उनका मुद्दा था निजीकरण और फ्री ट्रेड। उन्हें अल्बेरतो फ्युजीमोरी ने हराया। सन् 1990 से मारिओ वार्गास ल्योसा लंदन में रह रहे हैं और साल में लगभग 3 महीने पेरू में बिताते हैं। उन्होंने स्पेन कि नागरिकता भी ली है।
मारियो वार्गास ल्योसा की रचनाएँ दुनिया भर में कई भाषायों में अनुदित हुई हैं और पत्रकारिता में भी उनका अहम् योगदान रहा है। मारियो ल्योसा को साहित्य और ख़ासतौर से उपन्यास को बढ़ावा देने का श्रेय मिलता है और एक महान लेखक को, दक्षिण अमेरिका की एक महत्वपूर्ण आवाज को नोबेल पुरस्कार ने अंतरराष्ट्रीय मान्यता दी है।
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