वाममोर्चा को समर्पित :-
तरक्की पसंद कविता
केवल
राजा को ही
क्यों
घेरे?
क्या
कुछ
कम गलती है
मेरे
तेरे?
राजा एक हो सकता है
या
सात हज़ार सात सौ सात
पर
परजा की बात
तो
करोड़ों में जाती है
फिर भी
नयी रौशनी नहीं आती है.
राजा के
सेवक
लठैत
मुनीम
गुमाश्ता
पंडित
हरकारा
में हम नहीं है.
राजा का उतरन
पहनने वाला
कम नहीं है.
बाहर
राजा जिसे अखरता है.
घर में
राजा की नक़ल नहीं करता है.
बाहर
अराजकता
लूट
अन्याय
का शोर है.
पर
सच पूछो तो
हमारे अन्दर भी एक चोर है
जो
भूख के नाम पर
छीन लाये रोटी को
खुद डकार जाता है.
मगर
वादे
लेनिन की करता है.
कसमें
माओ की खाता है.
तरक्की पसंद कविता
केवल
राजा को ही
क्यों
घेरे?
क्या
कुछ
कम गलती है
मेरे
तेरे?
राजा एक हो सकता है
या
सात हज़ार सात सौ सात
पर
परजा की बात
तो
करोड़ों में जाती है
फिर भी
नयी रौशनी नहीं आती है.
राजा के
सेवक
लठैत
मुनीम
गुमाश्ता
पंडित
हरकारा
में हम नहीं है.
राजा का उतरन
पहनने वाला
कम नहीं है.
बाहर
राजा जिसे अखरता है.
घर में
राजा की नक़ल नहीं करता है.
बाहर
अराजकता
लूट
अन्याय
का शोर है.
पर
सच पूछो तो
हमारे अन्दर भी एक चोर है
जो
भूख के नाम पर
छीन लाये रोटी को
खुद डकार जाता है.
मगर
वादे
लेनिन की करता है.
कसमें
माओ की खाता है.