गुरुवार, 5 मार्च 2020

पिता

पिता
अपने हिस्से केवल ख्वाबों को चुन
मेरे हक़ीक़त में जान डाली है,
तुम्हारे पैरों की छालों से
मेरी पगडंडियां मखमली हो गई।
हर रात उगाते रहे
मेरे सिराहने
किताबें, कॉपियां, नटराज की पेंसिलें।
(आज वो बरगद की तरह फैल गया है)
बाटा कंपनी का
चमड़े का काला जूता
कितने प्यार से चमकाते रहे
पहनाने के पहिले,
कि जबकि
मिट्टी पे अड़ा तुम्हारा पांव
मिट्टी ही बना रहा।
जड़ों की तरह फैलता रहा,
हमारी खुशियों में फूलता रहा।
आज तक कभी खरीदते नहीं देखा तुमको
अपने लिए कोई कपड़ा।
मगर हर दशहरे में हमें
स्कूल यूनिफार्म सिला ही दिया करते थे।
केवल पढ़ना नहीं सिखाया
फ़िल्म भी दिखाया
कंचे भी खेलने को दिया।
कभी-कभी मीठा पान भी खिला दिया।
खुद कितना पूजा करते रहे,
मगर कभी कोई मंत्र याद करने को नहीं कहा।
पढ़ने के लिए कहा,
विषय के चयन को कभी प्रभावित नहीं किया।
खरच दिया जो कुछ भी कमाया,
कभी बचाया नहीं।
उड़ने को ऊंचा आसमान दिया
भरोसा मजबूत कंधे का।
कि जबकि जानते हैं
पचहत्तर पार के हो चुके हो।
हमें आज भी पूरा यकीन है
गिरने लगूंगा तो बचा ही लोगे,
रहूं दूर तुमसे 
चाहे कितना भी
दूगां जो आवाज़ कहीं से भी
हाथ बढ़ा ही दोगे।

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