सोमवार, 20 सितंबर 2010

तरक्की पसंद कविता .

तरक्की पसंद कविता
केवल
राजा को ही
क्यों
घेरे ?
क्या
कुछ कम गलती है
मेरे
तेरे ?
राजा एक हो सकता है
या
सात हजार सात सौ सात
पर
परजा की बात
तो
करोड़ों में जाती है
फिर भी
नयी रौशनी नहीं आती है ।
राजा के
सेवक
लठैत
मुनीम
गुमाश्ता
पंडित
हरकारा
में हम नहीं है ।
राजा का उतरन पहनने वाला
कम नहीं है ।
बाहर
राजा जिसे अखरता है ।
घर में
राजा की नक़ल नहीं करता है ?
बाहर
अराजकता
लूट
अन्याय
का शोर है
पर
सच पूछो तो
हमारे अन्दर भी एक चोर है
जो
भूख के नाम पर छीन लाये
रोटी को
खुद डकार जाता है
मगर
वादें लेनिन की करता है ।
कसमें माकी खाता है
- ॐ राजपूत
३१ -८ - २०१०

सुनो बिहारी .

अपना अपना गुट बनाकर इधर उधर टर्राते नेता ,
किसी का डफली किसी का राग खूब जोश में गाते नेता ,
दायें से जो पिछड़ गए तो बाएं से कुर्सी पाते नेता ,
सुनो बिहारी इस चुनाव में हमने देखे आते नेता जाते नेता
:- बेबस बिहारी