सोमवार, 18 नवंबर 2019

ज.ने.वि.

ज.ने.वि.
तुम्हारे टापू
हमारी बेबसी पे उग आए लगते हैं।
अथवा हमारी बंजर जमीन  लील रही है
आसमान को
हम तुम्हें टाट पे लगे मखमल के पैबंद से अधिक नहीं समझते
तुम अपने होने पे इतरा रहे हो।
हम अपने होने पे गुस्सा हैं।
तुम अपनी सहूलियत के लिए चिंतित हो।
हम अपनी जरूरतों के लिए चिल्ला रहे हैं।
हम चाहते हैं कि
तुम हममें पड़ो 
और 
फूट पड़ो
तिलस्मी साखों में।
फिर तुम तक पहुंचने की चिंता न रहे
हमारी इयत्ता जन्म से तुममें समायी रहे।
ओ दिल्ली के टीले पे बसे हरे जंगल
तुम फैल के हमतक चले क्यों नहीं आते।
तुम साकार हो।
हमारे यहां भी साकार हो जाओ।
जहॉं अरबों की आबादी अपने 
कुछ न होने की जश्न में डूबे हैं।
तुम्हारी द्विजता खटकती है।
तुम्हारे अंगूर
हमारे लिए वाकई खट्टे हैं
मगर हमारी मक्के की रोटी बड़ी मीठी है।
तुम अंगूर खाते हो
फिर
शहंशाह
वजीर
काजी
कोतवाल
प्रोफेसर
दार्शनिक
क्रांतिकारी
मसीहा
बनकर चले आते हो।
और हम 
सत्तू पीकर तुम्हें स्वीकार लेते हैं।

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2019

अपवित्र हो चुका हूं।


संस्कारों के साथ
आपने पाला था।
पंडितों की भाषा में 
आपने रचवाई थी
कुंडली
पूरे अनुष्ठान के साथ
विधि विधान
के दायरे 
एक एक कर
सोलह संस्कार तक पहुंचने से पहले
ही
अपवित्र हो गया मैं।
जब देखा कोई
मुझे नहीं छू सकता
किसी को 
मैं नहीं छू सकता।
जब देखा
मंदिरो का दरवाजा एक सा नहीं खुलता।
जब देखा
एक सा मंत्र नहीं है सबके लिए
एक सी भाषा नहीं है
है एक कोई देववाणी
जिसे सब नहीं पढ़ सकते
सुन भी नहीं सकते
ईश्वर ने कुछ को अपने जैसा बना दिया
मगर सबको नहीं बनाया अपने जैसा।
ईश्वर जैसा जो नहीं थे
उनके जैसा ही खुद को पाया।
इतिहास के दो पन्नों के बीच में
दफ़न कर दिए गए 
एक बड़े समाज और समय को
जिसे आज भी नहीं तलाश रहे
अकादमिक लोग
में अपनी सांस के स्पंदन को महसूस कर रहा हूँ
मैं
सुनो, मैं अपवित्र हो चुका हूँ।
तुम्हारी भाषा
तुम्हारे मंत्र
तुम्हारे संस्कारों में
तुम्हारे विधानों में
अपवित्रता में ही अब मेरी मुक्ति है।
मेरा देवता मेरे साथ प्रकट हो रहा है।
मेरे साथ ही मेरे देवता को भी मुक्ति मिल रही है
अब कहानी में भी मेरा देवता कुलीन नहीं होगा
द्विज भी नही
और न ही पुरुष
मेरा देवता 
तराशे गए चट्टानों से बने 
विशाल भवनों ने संदेश नहीं देगा
मेरा देवता डरायेगा नहीं
पिछले हजारों साल से
डर ने मंत्रो और ताबीज के सहारे
हमें दबा रखा है
हमारी खुशी को
पर्दा थमा दिया
या फिर गाँव का बाहरी हिस्सा।
बिना छल से
बिना मंत्र से
बिना शस्त्र और अस्त्र से
अपने अपवित्र होने का जश्न 
हम मनाएंगे अपने हाशिये पे खड़े होके
जहाँ से तुम्हारी बड़ी दुनिया सिकुड़ती हुई
दिखती है।

गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019

शोर का सन्नाटा है कि...

शोर का सन्नाटा है कि
हमें हमारे हक़ की आवाज़ डराने लगी है, 
कान फटने लगता है।
तेज रौशनी के अंधेरे में 
हमारा खुद का चेहरा छुप सा गया है, 
नहीं दिख रहा है कि किधर जा रहे हैं, 
हमारे हाथों से क्या हो रहा है।
ज्ञान की अज्ञानता ने 
हमारे वर्तमान को इतिहास के पन्ने में भटका दिया है। 
भारी किताबों के भरकम पन्नों से 
अभी तक के सभी सूत्र बिखर गए हैं।
खाये पिये अघाये लोगों की भूख ने 
रोटी को 
इतना मंहगा कर दिया है कि
इस सदी की सबसे अधिक भूखी रातें 
हमारे हिस्से में टकटकी लगाए गुजरती है।
साहसी लोगों की कायरता ने 
एक बार फिर से मुल्क को लुटने के लिए निहत्था छोड़ दिया है। हथकड़ीऔर बेड़ियां 
रोज रोज भीमकाय होती हुई 
भीड़ की भीड़ को निगलती जा रही है।
भीड़ की तन्हाई ने इतना अकेला कर दिया है 
कि जहां एक हाथ बढ़ाने भर से गिरते को 
गिरने से बचाया जा सकता था 
वहां भी हजार की मौजूदगी में 
एक निहत्था जान नहीं बचा पाता है।
कथित देवताओं की शैतानी से 
हमारी धार्मिक आस्थाएं दरकती हुई ढहने लगी है। 
हमने जो ऋचाओं से दिन की शुरुआत की थी, 
एक भद्दी गाली के साथ खत्म कर रहे हैं अंधेरे में ।
लोकतंत्र के अधिनायकत्व में, 
समाजवाद की विलासिता में 
बिचारि जनता 
मतदान केंद्र की ओर बढ़ती हुई लगातार भटकती जा रही है
और उसके हाथ की अंगुली से निकल के प्रभुसत्ता 
स्याह निशान छोड़ते हुए 
जाति 
तो मजहब 
तो पैसे 
तो दारू से नाजायज़ रिश्ता बनाती
हमारी उम्मीदों पे रंगरेलिया मना रही है।
और हम हैं कि भरोसे की दग़ाबाज़ी से लहूलुहान होते हुए भी
सुकून से सो जाते हैं।

बुधवार, 18 सितंबर 2019

आप रडार में हैं।

कभी कुछ नहीं लिखकर
आप बहुत कुछ लिख जाते है।
कभी
नहीं बोलकर ।
इसलिए ये न समझे
कि हमने
आपको चुप समझ लिया है।
जनाब
आप किरदार में हैं।
आप रडार में हैं।।
जब बोलते हैं
तो सुने भी जाते हैं
मगर
जब आप चुप रहते है।
आपकी आवाज बड़ी दूर तक जाती है।
कभी नहीं बोलकर और कभी बोलकर
जो खाई को पाटने का आपने अभियान चलाया है
ये जो कड़वाहट है
उससे भी आया है।

शनिवार, 7 सितंबर 2019

शीर्षक-कविता से पहले दुरुस्त हो लें। ( डिस्क्लेमर:- मर्दवादी ।)

कविता में बचे रहने के लिए
मुझे खोजना पड़ता है गेहूं का बारहमासी पौधा।
जिसमें पूरे परिवार की भूख निर्भर है।
इससे बनी रोटी
सिर्फ पेट की नहीं,
घर की भी जरूरत है।
ये कपड़ा भी बन जाता है,
छत भी,
स्कूल की फीस भी,
डॉक्टर की हिस्सेदारी भी,
नजराना भी यही है
और
जुर्माना भी।
इतना करके कविता में बचा हूँ,
शब्दों को नए-नए अर्थ में
पिरोने से पहले
पेट को भरना जरूरी है।
नहीं तो शब्द छुप से जाते हैं।
या फिर भागते दिखते हैं।
विद्रोह के शब्दों से भी
चारण गीत बजने लगता है।
विशाल बरगद की छाँह सुहानी लगने
लगती है।
देखते-देखते पसीना निकलना बंद हो जाता है,
वातानुकूलित माहौल का आदी होते ही
शब्द सुस्ताने लगता है।
फिर जुगत की तलाश में
हम भदेस गाली देते हैं।
और हमारे बाजू वाले आलोचक फतवा देते हैं,
कविता यही है।
हमारी नजर घड़ी पे जाती है।
दिन
महीना
साल पे।
इससे पहले कि कवि के चुकने की
घोषणा हो,
हमारा ठंडा-ठंडा कमरा असहिष्णु होता जाता है।
हम अपने स्कूल में नए-नए आए हुए रंगरूट
को
हरी झंडी दिखा
दूसरे के ट्रोल को बेनकाब करने में लग जाते हैं।
पुरानी पड़ी
भुला दी गई
पुरस्कार के वापसी की घोषणा करते हैं,
राशि को खरचते हुए।
उम्मीद यही कि
हमारी रोटी हमें मिलती रहे।
इसीलिए
जरूरी है
कि कविता करने से पहले
कम से कम
घर की छत पे ही गेहूं उगा लें,
रोटी जुटा ले।
कविता करने के दौरान
और बाद में रोटी की तलाश
बड़ी महंगी है।
आपकी रूह बिक सकती है।
हमारा जायका बिगड़ सकता है।

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

नए साल में

नए साल में
( हर साल के लिए )
1.
इस नए साल में
आप देखने लगें।
और देखे तो
और भी देखने की कोशिश करें।
आँख खुद से बंद न करें।
कोई पूछे
इससे पहले
देखने की घोषणा कर दे।
देखे तो
करीब का भी देखे
दूर का भी।
और आपके देखने से
दृश्य कदापि न बदले।

2.
आप सुनने लगें
वाकई इस तरह
कि
सुनाने वाले को हो भरोसा
सुन ली गई है हमारी
वाकई
सुने
तो वही सुने
जो बोला गया हो
सुने उसकी भी
जो बोलना चाहता है
मगर बुदबुदा ही पाता है।
और उसकी तो जरूर सुने
जिसे
बोलने की मनाही है।

3.
आप बोलने लगें
जितना भी बोलें
उतना तो बोलें।
अपने लिए बोले
मगर
उसके लिए जरूर बोलें।
जिन्होंने आपसे
देखने
सुनने
की उम्मीद बना रखी है।
आपकी आवाज़
आपसे प्रभावित हो।
आपकी आवाज़
से आप प्रभावित हो।

4.
आप बोले कि जरूरी है।
अब बोलना
आप देखे कि जरूरी है।
अब देखना
आप सुने कि जरूरी है।
अब सुनना।
बिना पक्ष हुए
बिना विपक्ष हुए।
आपके लिए दुआ है मेरी
और खुद के लिए
न्यू ईयर रेज़ल्यूशन।