सोमवार, 18 नवंबर 2019
ज.ने.वि.
गुरुवार, 24 अक्टूबर 2019
अपवित्र हो चुका हूं।
गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019
शोर का सन्नाटा है कि...
बुधवार, 18 सितंबर 2019
आप रडार में हैं।
कभी कुछ नहीं लिखकर
आप बहुत कुछ लिख जाते है।
कभी
नहीं बोलकर ।
इसलिए ये न समझे
कि हमने
आपको चुप समझ लिया है।
जनाब
आप किरदार में हैं।
आप रडार में हैं।।
जब बोलते हैं
तो सुने भी जाते हैं
मगर
जब आप चुप रहते है।
आपकी आवाज बड़ी दूर तक जाती है।
कभी नहीं बोलकर और कभी बोलकर
जो खाई को पाटने का आपने अभियान चलाया है
ये जो कड़वाहट है
उससे भी आया है।
शनिवार, 7 सितंबर 2019
शीर्षक-कविता से पहले दुरुस्त हो लें। ( डिस्क्लेमर:- मर्दवादी ।)
कविता में बचे रहने के लिए
मुझे खोजना पड़ता है गेहूं का बारहमासी पौधा।
जिसमें पूरे परिवार की भूख निर्भर है।
इससे बनी रोटी
सिर्फ पेट की नहीं,
घर की भी जरूरत है।
ये कपड़ा भी बन जाता है,
छत भी,
स्कूल की फीस भी,
डॉक्टर की हिस्सेदारी भी,
नजराना भी यही है
और
जुर्माना भी।
इतना करके कविता में बचा हूँ,
शब्दों को नए-नए अर्थ में
पिरोने से पहले
पेट को भरना जरूरी है।
नहीं तो शब्द छुप से जाते हैं।
या फिर भागते दिखते हैं।
विद्रोह के शब्दों से भी
चारण गीत बजने लगता है।
विशाल बरगद की छाँह सुहानी लगने
लगती है।
देखते-देखते पसीना निकलना बंद हो जाता है,
वातानुकूलित माहौल का आदी होते ही
शब्द सुस्ताने लगता है।
फिर जुगत की तलाश में
हम भदेस गाली देते हैं।
और हमारे बाजू वाले आलोचक फतवा देते हैं,
कविता यही है।
हमारी नजर घड़ी पे जाती है।
दिन
महीना
साल पे।
इससे पहले कि कवि के चुकने की
घोषणा हो,
हमारा ठंडा-ठंडा कमरा असहिष्णु होता जाता है।
हम अपने स्कूल में नए-नए आए हुए रंगरूट
को
हरी झंडी दिखा
दूसरे के ट्रोल को बेनकाब करने में लग जाते हैं।
पुरानी पड़ी
भुला दी गई
पुरस्कार के वापसी की घोषणा करते हैं,
राशि को खरचते हुए।
उम्मीद यही कि
हमारी रोटी हमें मिलती रहे।
इसीलिए
जरूरी है
कि कविता करने से पहले
कम से कम
घर की छत पे ही गेहूं उगा लें,
रोटी जुटा ले।
कविता करने के दौरान
और बाद में रोटी की तलाश
बड़ी महंगी है।
आपकी रूह बिक सकती है।
हमारा जायका बिगड़ सकता है।
मंगलवार, 1 जनवरी 2019
नए साल में
नए साल में
( हर साल के लिए )
1.
इस नए साल में
आप देखने लगें।
और देखे तो
और भी देखने की कोशिश करें।
आँख खुद से बंद न करें।
कोई पूछे
इससे पहले
देखने की घोषणा कर दे।
देखे तो
करीब का भी देखे
दूर का भी।
और आपके देखने से
दृश्य कदापि न बदले।
2.
आप सुनने लगें
वाकई इस तरह
कि
सुनाने वाले को हो भरोसा
सुन ली गई है हमारी
वाकई
सुने
तो वही सुने
जो बोला गया हो
सुने उसकी भी
जो बोलना चाहता है
मगर बुदबुदा ही पाता है।
और उसकी तो जरूर सुने
जिसे
बोलने की मनाही है।
3.
आप बोलने लगें
जितना भी बोलें
उतना तो बोलें।
अपने लिए बोले
मगर
उसके लिए जरूर बोलें।
जिन्होंने आपसे
देखने
सुनने
की उम्मीद बना रखी है।
आपकी आवाज़
आपसे प्रभावित हो।
आपकी आवाज़
से आप प्रभावित हो।
4.
आप बोले कि जरूरी है।
अब बोलना
आप देखे कि जरूरी है।
अब देखना
आप सुने कि जरूरी है।
अब सुनना।
बिना पक्ष हुए
बिना विपक्ष हुए।
आपके लिए दुआ है मेरी
और खुद के लिए
न्यू ईयर रेज़ल्यूशन।