रविवार, 12 जनवरी 2020

बानगी

बानगी।
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बौने ने
औने पौने तरीके से
ऊंची छलांग लगाई है।
हमारे दौर में ऐसी भी कविता आई है
कवि आगे नहीं बढ़ा है
कि 
(श्रोता ही कहो
पाठक होना
तो भुला दिया गया रस्म है)
श्रोता रुका पड़ा है
तुम जब बात करते हो तो
आंखे खोल के क्यों नहीं करते हो
अधखुली या बंद आंखों से
निकली कविता
नशा ही देती है
हमारी चेतना जगा नहीं पाती है।
तैंतीस देश
बिजनेस क्लास
फाइव स्टार प्रेसिडेंशियल सूट
नशा ही नहीं प्यास भी है।
नागार्जुन
गोरख
मुक्तिबोध
ही नहीं हुए हैं 
हिंदी में नामवर
सुना है कोई कुमार विश्वास भी है।

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