शनिवार, 2 नवंबर 2024

एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।

 कितना मुश्किल होता है

किसी को न बोल पाना

हम कितना जोड़ रहे हैं
घटाव में।
बेकार मान लिया जाता है
आदतन
अपने समय में
और
अपनी जगह पर जीना
किसी के लिए
अतीत में जीने की इच्छा इतनी प्रबल हो जाती है
कि
उसके लिए आज हिंसक हुए फिरते रहते हैं।
तो किसी के लिए
भविष्य के ख्वाब इतने प्रेरक होते हैं
कि
वर्तमान क्रांति का शिकार हुआ जाता है।
वक़्त कितना परेशान हैं
युद्ध, हिंसा, साजिश
धरमग्रन्थों से।
किसे कहते हैं
कौन कह सकता है।
कौन सुनने के लिए बैठा हुआ है।
सुनते सुनते सभी ने खुद को बहरा कर लिया है।
बोलते बोलते गूंगा।
देखने वालों ने खुद को अभ्यस्त कर लिया है।
भीषण त्रासदी से जुड़े दृश्य से लेकर मनोरम दृश्य तक में
एक सी प्रतिक्रिया दे रहे हैं सभी
संवेदना को लेकर
सभी मशीन हो गए हैं।
हम अखबार पढ़ते पढ़ते
पन्ने उलटने के आदि हो चुके हैं
हम चीजों के बिगड़ने को सहजता से देख सकते हैं।
हम निस्पृह होकर किसी मसीहा को आते हुए देख सकते हैं।
किसी नए राजनैतिक दल के गठन को
और किसी के विघटन को
उबासी लेते हुए निहार सकते हैं।
नए गठबंधन को बनते हुए
पुराने को बिखरते हुए
हम देख सुन और सूंघ सकते हैं
और फिर तेज की सुसु लगने पर
‘यहाँ मूतना मना है’ पर मूतकर निकल जाते हैं।
इम्तिहान है
इंसान कितने काम का है
जितना होगा
स्वीकार्य होगा
बाकी के लिए इतिहास है।
उमर लंबी है
हमसे
नदी, हवा, पानी, सूरज, धरती की।
एक दिन निजी रूप में हम नहीं रहेंगे
मगर
हमारी संतति का रिश्ता बना रहेगा
नई गलतियों का रुकना जरूरी है
ताकि
पुरानी का असर खत्म हो सके।
देख लो
गंगा ने अपने आप को
फिर से करीब ला दिया है।
हम जिसे कहते हैं बाढ़
दरअसल
वह गलत लिखे को मिटाने का
प्राकृतिक अभ्यास है।
अभी भी इंसान हुनरमंद है।
क्यों ‘युवाल’
हम शेर जीतने ताकतवर नहीं थे
न ही व्हेल जैसे तैराक
उड़ना नहीं आता था
इसलिए हमने नाप ली
सारी गलियाँ
सभी हमारे मातहत है
हमारी कृपा पर जीने वाले।
कमजोर बड़े खतरनाक होते हैं
आग से डरने वाले जानवर कहलाए
आग से खेलने वाले इंसान हो गए।
सभी जानवर अपनी ताकत से जानवर होते हैं
इंसान प्रकृति की ताकत से जानवर होता है।
क्योंकि हम अनुमति देते हैं
इसलिए
शेर भालू हाथी डॉल्फिन बचा हुआ है।
एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।

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