रविवार, 10 अक्तूबर 2010

ऊंट :रेगिस्तान का जहाज

भारत-पाकिस्तान सरहद पर बसे रेगिस्तानी जिले बाड़मेर के ऊंट विश्व भर में अपनी खास पहचान रखते हैं। ‘रेगिस्तान के जहाज’ के नाम से मशहूर इन ऊंटों की पशुपालक खास देखभाल करते हैं। एक दशक में ऊंटों की संख्या में काफी कमी आई है। कभी ग्रामीण अंचलों में ऊंट घर-घर की जरूरत रहे हैं। रेगिस्तानी धोरों में संचार व यातायात के बेहतर साधनों में ऊंटों का ही उपयोग किया जाता था, तो खेतों में जुताई का कार्य भी ग्रामीण ऊंटों के माध्यम से करते थे। संचार, यातायात और कृषि के आधुनिक साधनों और संसाधनों के बढ़ते प्रभाव ने ऊंटों का महत्‍व कम कर दिया। ऊंट कभी पशु मेलों जान हुआ करते थे। ऊंटों की कीमत लाखों रुपयों में लगती थी। आज ऊंट पालकों को ऊंटों की पर्याप्‍त कीमत पशु मेलों में नहीं मिलने से पशुपालको को नये-नये जतन करने होते हैं। ऊटों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए अब विशेष ब्‍यूटी पार्लर खुल गए हैं, जहां ऊंटों को सजाया-संवारा जाता है। डेर्जट ब्‍यूटी पार्लर ऐसा ही सैलून है, जहां ऊंटों के लिए विशेष कटिंग का प्रावधान है। सैलून संचालक मगाराम बताते हैं कि ऊंटों की कीमतें अब कम हो जाने के कारण ऊंट पालकों के सामने आजीविका का संकट खडा हो गया है। ऊंट पालक अपने ऊंटों को खास लुक देने के लिए विशेष कटिंग करवा कर खरीदारों का ध्‍यान आकर्षित करते हैं। इससे कई मर्तबा ऊंट पालको को अच्छे खरीददार मिल जाते हैं। आजकल ऊंटों के शरीर पर, विशेष तौर से बाल कटिंग कर, तरह-तरह के टैटू बनाए जाते हैं। यह टैटू ऊंटों में विशेष आकर्षण पैदा करते हैं। मगाराम के अनुसार विशेषज्ञ टैटू कटिंग के 500 से 700 स्पये तक लेते हैं। उधर जैसलमेर में आने वाले देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए भी ऐसे ऊंट विशेष आकर्षण का केन्द्र होते हैं। रेगिस्तान में ‘कैमल सफारी’ के लिए विशेष कटिंग वाले ऊंटों की बुकिंग हाथोंहाथ हो जाती है, साथ ही किराया भी अच्छा मिलता है। ‘कैमल सफारी’ का काम करने वाले सादिक खान ने बताया कि ऊंटों का रूप संवारने के लिए पैसा खर्च करने का लाभ मिलता है। ऊंटों के बालों पर तरह-तरह के कटिंग करा कर फूल-पत्तियां, बेल-बूटे, पक्षी आदि की डिजाईन उकेरते हैं। सैलानियों को इस तरह की डिजाईनें बेहद पसन्द आती हैं तथा ‘कैमल सफारी’ लिए ऐसे ऊंट पहली पसन्द होते हैं। पूर्व में इस तरह ऊंटों के सैलून नहीं थे, मगर विभिन्न पशु मेलों में इसका प्रचलन देख बाड़मेर और जैसलमेर में ‘कैमल ब्‍यूटी पार्लर’ काफी मात्रा में खुल गए हैं, जो ‘रेगिस्तान के जहाज’ ऊंटों को संवारने का काम करते हैं। पूर्व में पशुपालक स्वयं ऊंटों के बाल काटते थे। ग्रामीण क्षेत्रों में सभी पशुपालक एक स्थान पर एकत्रित होकर ऊंटों के बाल सामुहिक रूप से काटते थे। अब कैमल सैलूनों का प्रचलन बढ़ गया .

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