शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

फिर तुम्हारी याद दस्तक हुई सी जाती है

फिर तुम्हारी याद
दस्तक हुई सी जाती है
और
सिरहाने में सोये
किताब के पन्ने
जी उठते हैं
मेरे जीवन में घटी
जिन घटनाओ के नीचे
लाल स्याही से
तुमने एक लकीर डाली थी
महत्वपूर्ण
हर वह वाकया
इसी किताब में तो रहता है
जिसके हर पन्ने पर
चाँद अपनी चाँदनी
बिखेरता रहता है
फूल
खुद ही आकर
जहाँ खिल उठते हैं
बहार
पूरे बरस बनी रहती है
तुम्हारी याद
इसी कारण
अपनी छुट्टियाँ मनाती है
इस
किताब को जगाकर.

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